रहीम के प्रसिद्ध दोहे
रहिमन निज मन की बिथा मन ही राखो गोय
सुनि अठिलैंहैं लोग सब बाँटी न लैहै कोय
रहिमन ठठरी धुरि की रही पवन ते पूरि
गाँठ युक्ति की खुलि गई अंत धूरि को धूरि
रहिमन दानी दरिद्र तर तऊ जाँचबे योग
ज्यों सरितन सूखा परे कुँआ खनावत लोग
रहिमन यो सुख होत है बढ़त देखि निज गोत
ज्यों बड़री अँखियाँ निरखि आँखिन को सुख होत
ये रहीम जिन संग लै जनमत जगत न कोय
बैर प्रीति अभ्यास जस होत होत ही होय
रन बन ब्याधि बिपत्ति में रहिमन मरै न रोय
जो रच्छक जननी जठर सो हरि गये कि सोय
बड़े बड़ाई ना करैं बड़ो न बोलैं बोल
'रहिमन' हीरा कब कहै लाख टका मो मोल
संतत संपति जानि कै सब को सब कछु देत
दीनबंधु बिनु दीन की को 'रहीम' सुधि लेत
रहिमन मारग प्रेम को मत मतिहीन मझाव
जो डिगिहै तो फिर कहूँ नहिं धरने को पाँव
रहिमन कुटिल कुठार ज्यों करि डारत द्वै टूक
चतुरन के कसकत रहे समय चूक की हूक
वरु 'रहीम' कानन भलो बास करिय फल भोग
बंधु मध्य धनहीन ह्वै बसिबो उचित न योग
यों 'रहीम' गति बड़ेन की ज्यों तुरंग व्यवहार
दाग दिवावत आपु तन सही होत असवार
रहिमन घरिया रहँट की त्यो ओछे की डीठ
रीतिहि सन्मुख होत है भरी दिखावै पीठ
रहिमन असमय के परे हित अनहित ह्वै जाय
बधिक बधै मृग बाँसों रुधिरै देत बताय
रहिमन वहाँ न जाइये जहाँ कपट को हेत
हम तन ढारत ढेकुली सींचत अपनो खेत
रहिमन पर उपकार के करत न यारी बीच
माँस दियो शिवि भूप ने दीन्हों हाड़ दधीच
रहिमन रीति सराहिए जो घट गुन सम होय
भीति आप पै डारि कै सबै पिआवै तोय
रहिमन प्रीति सराहिए मिले होत रँग दून
ज्यों जरदी हरदी तजै तजै सफ़ेदी चून
रहिमन लाख भली करो अगुनी अगुन न जाय
राग सुनत पय पिअतहू साँप सहज धरि खाय
रहिमन बिपदाहू भली जो थोरे दिन होय
हित अनहित या जगत में जानि परत सब कोय
'रहिमन' अपने पेट सो बहुत कह्यो समुझाय
जो तू अनखाए रहे तोसों को अनखाय
रहिमन अब वे बिरछ कहँ जिनकी छॉह गँभीर
बाग़न बिच बिच देखिअत सेंहुड़ कुंज करीर
रहिमन ब्याह बिआधि है, सकहु तो जाहु बचाय
पायन बेड़ी पड़त है ढोल बजाय बजाय
रहिमन चाक कुम्हार को माँगे दिया न देइ
छेद में डंडा डारि कै चहै नाँद लै लेइ
होय न जाकी छाँह ढिग फल रहीम अति दूर
बढ़िहू सो बिनु काजही जैसे तार खजूर
वहै प्रीति नहिं रीति वह नहीं पाछिलो हेत
घटत घटत रहिमन घटै ज्यो कर लीन्हें रेत
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